Thursday, 14 February 2019

नपुंसक
रोली ने आज फिर अपने ही कमाये पैसे पति से मागें तो  उसपर बहुत चिल्लाने लगा और हाँथ भी उठाया।रोली आज कुछ विचलीत थी उसे फैसला लेना ही होगा।पति रमेश खुद कमाता नहीं सिर्फ उसके पैसों पर मौज करता हैं,दोस्तों के साथ शराब पीता है।बदले में मुझे मार, गाली,बच्चे आगे क्या सिखेंगे, नहीं नहीं मुझे नहीं रहना अब इस "नपुंसक" के साथ "जो तन से नहीं मन से नपुंसक हैं"।रोली फैसला ले चुकी एक नयी मंजिल की तरफ कदम बढ़ाने की।उसने आँसु पोछें और चल दी एक नयी रोशनी नये उत्साह के साथ,नहीं जीना मुझे इस नपुंसक के साथ।

Thursday, 27 September 2018

मुलाकात तो होगी

बात तो होगी हाँ इकरार तो होगी
पर न जाने कब वो मुलाकात तो होगी
एक -एक लम्हा बित रहा कैसे क्या बताऊँ
न जाने कब वो  बहारें शाम तो होगी
यकीं है हमें याद आएगी उन्हें भी हमारी
पर न जाने कब वो रात तो होगी
 बात तो होगी हाँ इकरार तो होगी
पर न जाने कब वो मुलाकात तो होगी

तुम ही हो

मेरी जिंदगी की हर मुस्कान तुम हो
मेरी जिंदगी की हर साँस तुम हो
तुम नहीं तो हम भी कुछ नहीं
मेरी जिंदगी की हर राजदार तुम हो
तुम से कोई शिकवे भी कर लुं
तुम से हर शिकायत भी कर लुं
मेरी जिंदगी की हर बहार तुम हो
मेरी जिंदगी की हर मुस्कान तुम हो
हाँ तुम ही हो बस तुम ही हो

Wednesday, 26 September 2018

रुठ कर दूर न हो जाए

ठहर जाती हैं निगाहें राह में तुम्हें देख कर
झुक जाती हैं नजरें तुम्हें सामने पाकर
कैसे कहुँ न रह पाऊं बिना देखें भी
और देख भी न पाऊं तुम्हें एक नजर भी
काँप जाता हूं कहीं गुस्ताखी न कोई हो जाए
वो कहीं रूठ कर हाँ रुठ कर दूर न हो जाए

Sunday, 23 September 2018

कुछ दिल में चुभता है
कुछ आँखों से बहता है।
हाँ इक दर्द है जो
किसी से भी नहीं छुपता है।
नम आंखों में सब दिखता है
ऐ दिल तु कितना भी
छुपा ले अपनों से कहाँ छिपता है।
एक खामोशी कि दिवार है पर
फिर भी दर्द आँखो से छलकता है।
कुछ दिल में चुभता है
कुछ आँखों से बहता है।


Friday, 7 September 2018

बहुत है


ख्वाहिशे बहुत है
शिकायतें भी बहुत है
कैसे कहुँ हाँ मोहब्बतें भी बहुत है।
भुल जाए ये मुमकिन नहीं
क्योंकि इस दिल को तेरी आदतें बहुत है।

Friday, 31 August 2018

पैदा होते ही बेचारी करार दिया जाता था।बङी होने पर पहले यही समझा दिया जाता था । पराया धन हो तुम। तुम परायी अमानत हो। हाँ बार बार यही बताया जाता था। ससुराल में भी चैन नहीं  अपनों से ही दबा दिया जाता था। कुछ बोले अगर तो यही समझा दिया जाता था। औरत हो तुम्हें दब कर ही रहना है हर सितम तुम्हें ही सहना हैं।अब सोच नयी आई हैं  अब औरत भी साँस ले पाई हैं।हाँ हर जगह अब अपनी  पहचान बनाई है।हर हाल में बस जीती थी अब शान से चलती हैं हाँ ये वही औरत  हैं।

नपुंसक रोली ने आज फिर अपने ही कमाये पैसे पति से मागें तो  उसपर बहुत चिल्लाने लगा और हाँथ भी उठाया।रोली आज कुछ विचलीत थी उसे फैसला लेना ही ...