पैदा होते ही बेचारी करार दिया जाता था।बङी होने पर पहले यही समझा दिया जाता था । पराया धन हो तुम। तुम परायी अमानत हो। हाँ बार बार यही बताया जाता था। ससुराल में भी चैन नहीं अपनों से ही दबा दिया जाता था। कुछ बोले अगर तो यही समझा दिया जाता था। औरत हो तुम्हें दब कर ही रहना है हर सितम तुम्हें ही सहना हैं।अब सोच नयी आई हैं अब औरत भी साँस ले पाई हैं।हाँ हर जगह अब अपनी पहचान बनाई है।हर हाल में बस जीती थी अब शान से चलती हैं हाँ ये वही औरत हैं।
एक पयारा सा एहसास एक खूसनूमा पल जब हमारे दिल से निकल कर एक या चंद लाइनों मे हमारे जेहन मे आ जाती है वही तो शायरी है एक मीठा एहसास थोड़ा सा पयार थोड़ा टकरार सब शायरी मे समा जाती है और जब यही बातें शब्दों का रूप लेकर बड़ी हो जाती है तो वही कहानियां बन जाती है।
Friday, 31 August 2018
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नपुंसक रोली ने आज फिर अपने ही कमाये पैसे पति से मागें तो उसपर बहुत चिल्लाने लगा और हाँथ भी उठाया।रोली आज कुछ विचलीत थी उसे फैसला लेना ही ...
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तेरी यादों के साएं को दामन मे छुपाए बैठे हैं जी चाहता है देखती रहूँ हरपल नजरों में बस आप समाए बैठे हैं। किसी और को अब क्या कहुँ खुद ...
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जी चाहता है आज फीर तुमसे मौहब्बत कर लूँ थोड़ी सी आज फिर शरारत कर लूँ तुम ही हो जीसने मुझे जीना सीखाया तुम ही हो जीसने कुछ करना सीखाया...
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