ठहर जाती हैं निगाहें राह में तुम्हें देख कर
झुक जाती हैं नजरें तुम्हें सामने पाकर
कैसे कहुँ न रह पाऊं बिना देखें भी
और देख भी न पाऊं तुम्हें एक नजर भी
काँप जाता हूं कहीं गुस्ताखी न कोई हो जाए
वो कहीं रूठ कर हाँ रुठ कर दूर न हो जाए
झुक जाती हैं नजरें तुम्हें सामने पाकर
कैसे कहुँ न रह पाऊं बिना देखें भी
और देख भी न पाऊं तुम्हें एक नजर भी
काँप जाता हूं कहीं गुस्ताखी न कोई हो जाए
वो कहीं रूठ कर हाँ रुठ कर दूर न हो जाए
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