Monday 6 August 2018

इन्तजार

 बहुत जमाने बाद महफीले यार कि होगी
कुछ शीकवे कुछ शीकायत सारी रात  तो होगी।
   
           किस तरह गुजारा है हर लम्हा हमने
               हर रात गुजारी है सिसकियों मे।
उनके आने कि आहट जो  मिल गई है
कैसे बताऐ  हम कि तकदीर खुल गई है।
              हर दर्द गुम जाएगा गुमनामी के अंधेरों मे
            हर लम्हा जैसे रूक जाएगा उनकी ही कदमों मे।
खामोश साँसों को जैसे फिर से साँस मिल गई है
हाँ उनके आने कि आहट ही नयी जान दे गई है।
                              रश्मि

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